ऐसा क्यों हो रहा है??

हमारा देश प्राचीन काल से ही अपनी विद्वता के लिए विश्वविख्यात रहा है। हमारी भूमि ने जहाँ अनेकों प्रकाण्ड शास्त्रार्थियों को जन्म दिया वहीं ये महात्मा बुद्ध, चाणक्य और स्वामी विवेकानन्द जैसे विद्वानों की जननी भी रही। एक ओर जहाँ हमारे वेदों ने दुनिया को विज्ञान,तकनीकी और अनुसन्धान सिखाया वहीं दूसरी ओर हम सांस्कृतिक रूप से भी काफी समृद्ध रहे। यही वजह थी कि हमें “विश्वगुरु” का दर्जा मिला। गुजरते वक़्त के साथ हम अपना वजूद खोते गए और फिर विदेशी आक्रमणकारियों के शासन ने हमें अपनी संस्कृति से भी दूर कर दिया। पहले मुग़ल और फिर अंग्रेजों के शासनकाल ने हमारी जड़ों को खोखला किया और नतीजन आज हम पाश्चात्य संस्कृति की बेड़ियों में जकड़ कर रह गये हैं। हम भारत की सच्चाई और आत्मीयता भरी दुनिया से दूर दिखावे की दुनिया में जी रहे हैं जो हमें हमारे सुनहरे अतीत से और दूर कर रही है। आज हम तकनीकी और सांस्कृतिक रूप से पिछड़ रहे हैं। शिक्षा के गिरते स्तर का मुख्य कारण हमारी शिक्षा पद्धति है। किसी भी देश का भविष्य और उसकी तरक्की उसके युवाओं पर निर्भर करती है और एक युवा अपनी शिक्षा के दम पर योग्य बनता है। किसी भी इंसान की सोच पर उसकी शिक्षा और वातावरण का गहरा प्रभाव होता है।

हमारे देश में सरकारी स्कूलों की स्थिति आज भी दयनीय बनी हुयी है। इस समस्या का मुख्य कारण केवल शिक्षकों की कमी नहीं है बल्कि प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी है। एक रिपोर्ट के अनुसार योग्य शिक्षकों की कमी हमारे देश के लगभग सभी राज्यों में है। शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात, शिक्षकों की संख्या और उनकी ट्रेनिंग के मामले में उत्तर प्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्यों की स्थिति भी दयनीय है। जहाँ खाली पड़े पदों को भरने के लिए अतिथि शिक्षकों के नाम पर बड़ी संख्या में अप्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती कर दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में 39.7 प्रतिशत अध्यापक प्रशिक्षित नहीं हैं। जबकि माध्यमिक स्तर पर ऐसे शिक्षकों की संख्या 37.1 प्रतिशत है। हालांकि अच्छी बात यह है कि शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए राज्य सरकार ठोस कदम उठा रही है।  

लेकिन, आश्चर्य की बात यह है कि भारत के सरकारी शिक्षक न केवल प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने वाले अपने समकक्ष शिक्षकों की तुलना में बल्कि कई अन्य देशों की तुलना में भी अधिक वेतन पाते हैं। चीन की तुलना में इनका वेतन चार गुना अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार यूपी में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का वेतन भारत के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू आय से चार गुना और स्वयं उत्तर प्रदेश के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू आय से 15 गुना अधिक है। इसके बावजूद भी सीखने के स्तरों के आधार पर भारतीय शिक्षकों का प्रदर्शन ‘प्रोग्राम फॉर द इंटरनेशनल असेसमेंट टेस्ट’ में बहुत ही ख़राब रहा है। इस कार्यक्रम में 74 देशों के बीच भारत का स्थान 73वां रहा वहीं चीन दूसरे स्थान पर रहा।

 

सरकारी स्कूलों की दयनीय स्थिति 

आज भी मोटी रक़म लेकर एडमिशन देने वाले निजी स्कूलों की बढ़ती संख्या के बावजूद भी हमारे देश के 55 प्रतिशत (लगभग 29 करोड़) बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। ऐसे में उनके भविष्य को अंधकारमय होने से बचाने के लिए केवल भारी भरकम बजट आवंटित करना ही एकमात्र उपाय नहीं है, बल्कि सुधार के रूप में प्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती ईमानदारी से किये जाने की ज़रूरत है।


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