बहुत सही...यहाँ तो सब राम भरोसे है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति दस हजार की आबादी पर पचास बिस्तर और पच्चीस डॉक्टर होने चाहिए। जबकि हमारे देश में प्रति दस हजार की आबादी पर मात्र नौ बिस्तर और सात चिकित्सक ही उपलब्ध हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की स्तरीय स्थिति के मामले में हमारा देश विकसित देशों से तो पीछे है ही,  लेकिन कई विकासशील देशों से भी बराबरी नहीं कर पा रहा है। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े हर मानक पर हम आज भी दुनिया के अन्य देशों में निचले पायदान पर खड़े हैं।

 

हाल में आयी नीति आयोग की रिपोर्ट ‘स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत’ ने देश की स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय स्थिति को सामने रखा है। रिपोर्ट में बिगड़ती स्वास्थ्य सेवाओं की जो हालत सामने आई है, वह हकीकत में चिंता का विषय है। नीति आयोग ने 23 संकेतकों को आधार बना कर राज्यों की एक सूची तैयार की है। ये सभी संकेतक जीवन सहेजने से जुड़ी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं के सूचक हैं। इनमें नवजात मृत्यु दर, प्रजनन दर, लिंगानुपात, स्वास्थ्य सेवाओं की संचालन व्यवस्था, अधिकारियों की नियुक्ति और अवधि के साथ ही नर्सों एवं डॉक्टरों के खाली पद जैसे मुद्दे शामिल हैं। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत बयान करने वाली इस रिपोर्ट को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, विश्व बैंक और नीति आयोग ने मिल कर तैयार किया है। रिपोर्ट को तीन हिस्सों- बड़े राज्य, छोटे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में बांट कर बनाया गया है।


21 प्रदेशों की इस फेहरिस्त में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बहुत निंदनीय बतायी गयी है। इसके साथ ही साथ उत्तर प्रदेश के बाद बिहार जैसे अन्य राज्यों को रखा गया है, जहाँ स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा चरमराया हुआ है। उत्तर प्रदेश में इस बार भी दिमागी बुखार ने 900 से ज्यादा बच्चों की जान ले ली।

 

 

दरअसल, भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में स्वास्थ्य सेवाओं की जर्जर स्थिति हमेशा से चिंता का विषय रही है। जीवन रक्षा से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति नागरिकों को निराश ही करती आयी है, लेकिन अफसोस कि डिजिटल इंडिया के इस दौर में भी आम नागरिकों की जान भगवान भरोसे ही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जो स्वास्थ्य सेवायें जीवन की बुनियादी जरूरतों में से एक हैं, उनकी बेहतरी से जुड़े फैसलों और योजनाओं की ज़मीनी हकीकत क्या है?


केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट नेशनल हेल्थ प्रोफाइल-2015 में देश की खस्ताहाल स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर सामने आयी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 61070लोगों पर केवल एक सरकारी अस्पताल और 1837 लोगों पर सिर्फ एक बिस्तर उपलब्ध है। इस रिपोर्ट मुताबिक स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार को आबादी के हिसाब से देखें तो हम विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्धारित मानकों से बहुत पीछे हैं।

 

 

आंकड़े बताते हैं कि स्वास्थ्य सेवा सुलभ होने के मामले में भारत दुनिया के 195 देशों में 154वें पायदान पर हैं। स्वास्थ्य सेवा पर भारत सरकार का खर्च (जीडीपी का 1.15 फीसदी) दुनिया के सबसे कम खर्चों में से एक है। देश में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे और इस क्षेत्र में काम करने वालों की बेतहाशा कमी है। भारत में 1995 में यह 4.06 फीसदी था जो 2013 में घटकर 3.97 फीसदी हुआ और 2017 में और भी घटता हुआ 1.15 फीसदी हो गया दूसरे देशों से अगर तुलना की जायें तो अमेरिका में यह जीडीपी का 18 फीसदी, मलयेशिया में 4.2 फीसदी, चीन में 6, थाइलैंड में 4.1 फीसदी, फिलीपींस में 4.7 फीसदी, इंडोनेशिया में 2.8, नाइजीरिया में 3.7 श्रीलंका में 3.5 और पाकिस्तान में 2.6 फीसदी है

 

 

“अगर हम इन आंकड़ों को गौर से देखें और फिर अपने नजदीकी अस्पतालों की स्थिति की पड़ताल करें, तो हमें साफ हो जायेगा कि इनकी हालत इतनी बुरी क्यों है?”


भड़ास अभी बाकी है...