डॉक्टर साहब...आपकी चमत्कारी भाषा तो सिर्फ “वो” ही जानें...

 

हमारे देश में बीमारी और चिकित्सा को लेकर आम लोगों के बीच जागरूकता का स्तर पहले ही बहुत कम है। ज्यादातर लोग अपनी सेहत खराब होने पर बीमारी से लेकर उसके कारणों के बारे में कई तरह का अंदाजा लगाने में ही अपना काफी वक्त गुज़ार देते हैं। फिर डॉक्टर के पास जाने के बाद बीमारी की पहचान, उसके लिए परामर्श के तौर पर ली जाने वाली दवाओं के नाम और जांच आदि के जो ब्योरे पर्चे पर लिखे जाते हैं, उन्हें समझना मरीज या उनके परिजनों के लिए मुमकिन नहीं होता है। उसे या तो खुद डॉक्टर समझ पाता है या फिर उसका सहयोगी। कई बार तो दवा की दुकान में बैठे लोग भी कुछ शब्दों या अक्षरों को लेकर भ्रमित हो जाते हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि दवापर्ची पर डॉक्टर की लिखावट स्पष्ट नहीं होती। एक तरह से वह संकेत की भाषा में लिखा होता है, जिसे समझना आमतौर पर सबके वश में नहीं होता। इसकी वजह से कई तरह की परेशानी खड़ी होती है, जिसमें दवाइयां बदल जाने से लेकर उसके असर तक में जोखिम पैदा होता है।

 

 

इसलिए समय-समय पर ऐसी मांग उठती रही है कि डॉक्टर मरीजों के लिए बनाई जाने वाली दवापर्ची पर परामर्श के तौर पर निर्देशों और खासकर दवाइयों के नाम और जांच के बारे में स्पष्ट और बड़े अक्षरों में लिखें, ताकि वह न केवल कंपाउंडरों और मेडिकल स्टोर्स ही नहीं बल्कि खुद मरीजों या उनके परिजनों को भी आसानी से समझ में आए। इससे एक तरह की पारदर्शिता भी सुनिश्चित होगी। शायद यही वजह है कि उत्तर प्रदेश के लखनऊ नगर के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी ने अपने यहाँ काम करने वाले सभी डॉक्टरों के लिए यह निर्देश जारी किया है कि वे अब दवापर्चे पर दवाओं और जांच के नाम बड़े-बड़े एवं साफ अक्षरों में लिखें।


हालांकि मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया के नियमों में यह साफतौर पर दर्ज है कि डॉक्टरों को अपनी दवापर्ची पर स्पष्ट और बड़े अक्षरों में सलाह, दवा और जांच के नाम लिखने होंगे। विभिन्न निजी अस्पतालों को भी मान्यता देते समय यह शर्त लिखित रूप में सामने रखी जाती है। केंद्र एवं राज्य सरकार की ओर से भी समय-समय पर इस संबंध में स्पष्ट निर्देश जारी किये जाते हैं। मगर डॉक्टरों को इन नियमों का पालन जरूरी नहीं लगता है। इसके साथ-साथ कई बार यह भी देखा जा सकता है कि डॉक्टर या उसके सहयोगी मरीजों के लिए दवा लिखने के बाद किसी खास दुकान ( डॉक्टर के क्लीनिक के पास का मेडिकल स्टोर) से ही दवा खरीदने की सलाह देते हैं या उनके द्वारा लिखी हुयी दवा सिर्फ वहीँ मिलती है। गौर करने की बात ये है कि उस दुकानदार को पर्चे पर लिखी गई दवा का नाम आसानी से समझ में आ जाता है इससे ये तो स्पष्ट हो जाता है कि इसमें कमीशन के लेन-देन का खेल चलता हैं। इसलिए अगर डॉक्टर द्वारा पर्चे पर दवा और जांच का नाम साफ-साफ लिखा जाए तो उससे मरीजों या उनके परिजनों को बीमारी और उसके इलाज के लिए खरीदी जाने वाली दवा को लेकर स्पष्टता होगी।

 

 

“डॉक्टर साहब की चमत्कारी भाषा के स्पष्ट हो जाने से न सिर्फ मरीजों बल्कि उनके तीमारदारों को भी सुविधा मिलेगी, और चिकित्सा प्रणाली के गलाकाट खर्चों में भी राहत मिलेगी।”