अमेरिकी दौरे से आने के बाद इमरान खान काफी खुश हैं। ट्रंप से मुलाकात के बाद वह खुद को विजेता के रूप में पेश कर रहे हैं। इमरान के शब्दों में उनकी खुशी का आलम क्रिकेट विश्व कप जीतने जैसा दिख रहा है। पाकिस्तान में उनके समर्थक फूले नहीं समा रहे हैं। ट्रंप के मुंह से अपने लिए दो अच्छे बोल सुनने के बाद उनका थोड़ा इतराने का हक तो बनता ही है। इमरान खान इस बात से भी ज्यादा खुश हो रहे हैं कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति से कश्मीर का जिक्र करा लिया।कश्मीर पर मध्यस्थता वाले ट्रंप के बयान को पाकिस्तान सरकार अपनी कामयाबी के रूप में देख रही है लेकिन यह सबको पता है कि ट्रंप ने कश्मीर पर जो बयान दिया वह स्वाभाविक बातचीत की प्रक्रिया के ही तहत था, इसका कोई गंभीर निष्कर्ष नहीं निकलना है। क्योंकि व्हाइट हाउस और अमेरिकी प्रशासन ने ट्रंप के बयान के थोड़े देर बाद ही अपना आधिकारिक रुख स्पष्ट कर दिया। भारत में मामले को तूल पकाड़ता देख व्हाइट हाउस ने बिना देरी किए अपना रुख साफ कर दिया कि ओसाका में ट्रंप और पीएम मोदी की मुलाकात के दौरान कश्मीर पर आधिकारिक वार्ता के कोई आधिकारिक प्रमाण उसके पास मौजूद नहीं हैं। वहीं भारत ने भी अपना आधिकारिक रुख जाहिर करते हुए कहा कि पीएम मोदी ने ट्रंप से कश्मीर पर मध्यस्थता करने के लिए नहीं कहा। अमेरिका और भारत के आधिकारिक रुख के बाद पाकिस्तान कश्मीर पर अपने लिए कुछ देखता है तो वह उसकी सोच है।
वहीं पाकिस्तान का वजीर-ए-आजम बने इमरान खान के एक साल पूरे होने जा रहे हैं। जिन वादों और दावों के साथ वह पाकिस्तान की सत्ता में आए या लाए गए। उन वादों और दावों पर वह खरा नहीं उतर पाए हैं। इमरान ने अपने कई वादों से यू-टर्न ले लिया है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर वह नाकाम हुए हैं। आर्थिक मोर्चे पर उनका देश दिवालिया होने की कगार पर है। पिछले एक साल में पाकिस्तान तरक्की करने की बजाय पिछड़ गया है।पकिस्तान में विरोधी नेताओं की आवाज कुचलने और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न के लिए इमरान सरकार की आलोचना हो रही है।
अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड तोड़ गिरावट
इमरान खान की सबसे ज्यादा नाकामी आर्थिक मोर्चे पर साबित हुई है। पिछले एक साल में पाकिस्तानी रुपए के कीमत में 38 प्रतिशत का अवमूल्यन हुआ है। आर्थिक हालत संभलती न देख इमरान को अपने वित्त मंत्री को हटाना पड़ा है। यह दीगर बात है कि इमरान अपने वित्त मंत्री की योग्यता के कसीदे पढ़ते आए हैं। अपने चुनाव प्रचार के दौरान इमरान खान ने दावा किया था कि वह बिना कर्ज लिए पाकिस्तान की खस्ता हालत सुधार देंगे और अर्थव्यवस्था में रवानगी भर देंगे लेकिन उनकी सरकार ने कर्ज लेने के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।
पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर में भारी गिरावट
रिपोर्टों की मानें तो इमरान सरकार ने पिछले एक साल में 16 अरब डॉलर का कर्ज लिया है। जो कि पाकिस्तान के इतिहास में एक साल में लिया गया सबसे बड़ा कर्ज है। पिछले एक साल में पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर अपने नौ साल के सबसे निचले स्तर 3.3 प्रतिशत पर पहुंच गई है जिससे सरकार का वित्तीय घाटा बढ़ता जा रहा है। इस एक साल में उनके खाते में ऐसी कोई उपलब्धि नहीं आ पाई है जिसे वह अपनी आवाम के समक्ष पेश कर सकें। जाहिर है कि ऐसे समय में जब घरेलू स्तर पर 'नया पाकिस्तान' का दम फूल रहा है तो अमेरिका के थोड़े नरम सुर उन्हें प्रिय लगेंगे। ऐसा नहीं है कि ट्रंप प्रशासन इमरान का आदर-सत्कार करने के लिए तैयार था। ट्रंप के साथ मीटिंग तय कराने में किसकी भूमिका रही है यह बात किसी से छिपी नहीं है। इस मुलाकात के लिए इमरान ने सऊदी के शहजादे से अपनी पैरवी कराई तब जाकर ट्रंप से मुलाकात संभव हो सकी।
अमेरिकी प्रशासन ने पाकिस्तान पर जो थोड़ी-बहुत नरमी दिखाई है उसका भी कारण है। इसकी सबसे बड़ी वजह अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका है। अमेरिका जानता है कि अफगान शांति प्रक्रिया को अंतिम रूप देने में पाकिस्तान बड़ी भूमिका निभा सकता है और पाकिस्तान तालिबान पर दबाव डालकर उसे वार्ता की मेज पर ला सकता है। अफगानिस्तान में शांति तालिबान के साथ बातचीत के बगैर संभव नहीं है। अफगानिस्तान में शांति के लिए जो भी समझौता या रास्ता बनेगा उसमें तालिबान की भूमिका है और तालिबान पर नियंत्रण अधिकतम पाकिस्तान के रुख और उसके दखल पर निर्भर है। इस समय अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत है इसलिए उसने पाकिस्तान को अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाने के लिए राहत भरे दो शब्द कह दिए है जिसके कारण आज इमरान खान अपने आपको सांतवे आसमान पर देख रहे है। ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा कि इस मेहमान नवाज़ी में हकीकत है या दिया गया लॉलीपॉप।
भड़ास अभी बाकी है...