अरुण जेटली नहीं रहे। महीने भर के अंदर बीजेपी को दूसरा बड़ा झटका लगा है। इसी महीने की शुरुआत में सुषमा स्वराज का निधन हो गया था। जेटली और स्वराज की अपनी-अपनी खूबियां थीं। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली पिछली सरकार में जब अरुण जेटली मंत्री थे, तो वे अक्सर सरकार के संकटमोचक की भूमिका में नजर आते। मसला कोई भी हो, जेटली के पास उसका जवाब जरूर होता। जब राफेल जैसे पेचीदा मामले पर विपक्ष ने मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा किया, तो रक्षामंत्री से पहले अरुण जेटली इन हमलों का जवाब देने के लिए मैदान में खड़े दिखाई दिये। ऐसे और भी कई मौके आए, जब जेटली ने सरकार की उखड़ती सांस को 'ऑक्सीजन'प्रदान की। हालांकि यह भी सही है कि जेटली ने अपनी सियासी पारी की शुरुआत छात्र जीवन से की। आपातकाल में जेल भी गए, लेकिन वे कभी 'जननेता' नहीं बन पाए। अपनी 4 दशक से ज्यादा की राजनीतिक पारी में वे एक बार लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके जेटली की चमक कभी फीकी नहीं पड़ी।
इस साल लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जेटली ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए खुद कोई पद लेने से इनकार कर दिया था। तब बीजेपी के तमाम नेताओं ने उनसे इस फैसले पर विचार करने का आग्रह किया। यही नहीं खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनसे इस मसले पर बात की। हालांकि, अरुण जेटली के गिरते स्वास्थ्य ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी। अरुण जेटली आखिरी वक्त तक पार्टी में 'अहम' रहे, इसकी कई वजहें थी। उन्हें कानून और सियासत की जितनी बारीक समझ थी, उससे कहीं ज्यादा समझ 'रिश्तों' की थी। वे राजनीति के हर रास्ते और तौर-तरीकों से वाकिफ थे। कौन-सा ताला किस चाबी से खुलता है, यह उन्हें अच्छी तरह पता था और जब आपके पास हर ताले की चाबी हो, तो सियासत में भला और क्या चाहिए!
वहीं जेटली के समतल सुषमा स्वराज का मिज़ाज बिल्कुल अलग था। अक्सर लोकसभा क्षेत्र से दिल्ली की दूरी तय करने के बाद नेताओं के लिए यह दूरी एक 'खाई' बन जाती है, जो न तो कभी पटती है और न ही इसे पाटने का प्रयास किया जाता है, लेकिन सुषमा स्वराज ने इस मामले में मिसाल पेश की। उन्होंने अपनी सियासी पारी के दौरान 'राजनीतिक क्रूरता' को अपने पास फटकने तक नहीं दिया। केंद्र की पिछली सरकार में विदेश मंत्री रहते हुए उन्होंने सात समंदर पार बसे भारतीयों के अंदर विश्वास पैदा किया कि एक सन्देश माध्यम ट्वीट पर देश उनके साथ खड़ा है, उनकी दुःख-तकलीफ सुन रहा है। ऐसे मौके भी आए जब सुषमा स्वराज को ख़ुद अपनी पार्टी के कई नेताओं की आलोचना भी झेलनी पड़ी। लेकिन इस तरह के हर मौके पर उनका दिल 'बड़ा' नजर आया। अब सुषमा स्वराज और अरुण जेटली दोनों नहीं हैं। उनके साथ ही 'दिल और दिमाग' से काम करने वाले नेताओं का एक दौर भी चला गया।
“जनमानस भड़ास परिवार ऐसे राजनेताओं को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।”