पायल घोष का आरोप और बॉलीवुड में मीटू कैंपेन का सच, क्या वास्तव में बदलाव आया?

हाल ही में अभिनेत्री पायल घोष ने फिल्म डॉयरेक्टर अनुराग कश्यप पर यौन शोषण का आरोप लगाया तो दो साल पूर्व चली मीटू कैंपेन पर एक बार फिर से चर्चा होने लगी। पायल घोष के समर्थन में कंगना रनौत ने आवाज़ उठाई तो वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ने इस संबध में उनसे सभी डिटेल्स की मांग करते हुए अपना पक्ष रखने की अपील की। जिसके बाद अनुराग कश्यप ने इन आरोपों का खंडन करते हुए इसे बेबुनियाद बताया। लेकिन बॉलीवुड में पहले भी यौन शोषण पर आवाज़ें उठती रही हैं। 


खासकर जब 2017 में हॉलीवुड में मीटू कैंपेन की शुरुआत हुई तो बॉलीवुड में भी अभिनेत्रियों ने इस मुद्दे पर खुलकर बोलना शुरु किया। सबसे पहले विदेश से लौटीं अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने एक्टर नाना पाटेकर पर यौन शोषण का आरोप लगाते हुए महिलाओं के हक में आवाज़ बुलंद की। जिसके बाद से बॉलीवुड समेत सभी क्षेत्रों की महिलाओं ने अपने साथ हुए यौन शोषण पर खुलकर बोलना शुरु किया। लेकिन इन सब के बावजूद स्थिति अभी भी वही बनी हुई है। आज भी समाज में अधिकतर यौन शोषण के केस में महिलाओं को ही ज़िम्मेदार ठहरा कर चुप करा दिया जाता है। बॉलीवुड से लेकर कॉरपोरेट सेक्टर तक हर ओर इस मुद्दे पर खौफनाक सन्नाटा ही दिखता है। हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई फिल्म गिल्टी में भी मीटू कैंपेन और भारतीय समाज की मानसिकता को दर्शाया गया है। 

इस तरह के मामले सामने आने पर या तो उसे दबाने की कोशिश की जाती है या फिर साबित करने का दारोमदार पीड़िता के ऊपर डालकर उसके लिए परिस्थितियां और मुश्किल कर दी जाती हैं। पिछले कुछ सालों में यौन शोषण के कुछ हाई प्रोफाइल मामलों में को भी लें, तो नतीजे बहुत उत्साहवर्धक नजर नहीं आते। मसलन टेरी की आईसीसी ने जब पूर्व डायरेक्टर जनरल आर के पचौरी के खिलाफ हुई जांच को सही पाया, तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा लेकिन मामले के अदालत में पहुंचते ही निपटारे की गति फिर से धीमी हो गई। 2015 की शुरुआत में सुर्खियों में आए इस मामले में पचौरी के खिलाफ दिल्ली की एक अदालत में आरोप पिछले हफ्ते तय किए जा सके हैं। इस पूरी अवधि में पचौरी एक बार भी गिरफ्तार नहीं हुए।

तहलका के पूर्व एडिटर इन चीफ तरुण तेजपाल के खिलाफ 2013 में सामने आए यौन उत्पीड़न के आरोपों पर चार्जशीट 2017 में दाखिल हो पाई। तेजपाल के रसूखदार वकीलों की काबि‍लियत के चलते मामले की सुनवाई शुरू होनी अभी भी बाकी है। इन मामलों में हालांकि आरोपियों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा, लेकिन पीड़िताओं की 'अग्निपरीक्षा' भी अभी तक जारी है।

किसी भी कानून की सफलता सबसे पहली उसकी स्वीकार्यता पर निर्भर करती है। आम धारणाओं में बलात्कार से कम उत्पीड़न को यौन शोषण नहीं माना जाना इस कानून को कमजोर बनाता है। यौन शोषण के मामलों में साक्ष्यों के अभाव और उत्पीड़न साबित करने की जिम्मेदारी औरतों पर डालने जैसी मजबूरियां और सबसे अहम अपना करियर खत्म होने का डर पीड़िताओं की हिम्मत तोड़ने के लिए काफी होता है।

महिला प्रधान फिल्मों में अभिनय करने वाली अभिनेत्री राधिका आप्टे कहती हैं कि ''भारतीय फिल्मों में एक अदद मौका बड़ी मुश्किल से मिलता है, इसके लिए हमारे निजी संपर्क, सोसाइटी में हमारी पहुंच और हम कैसे दिखते हैं ये सब अहम होता है। जबकि हॉलीवुड में इसकी एक औपचारिक प्रक्रिया है जिसमें एक्टिंग स्कूल में प्रवेश लेना और फिर वहां से स्टेज शो के ज़रिए फिल्में प्राप्त की जाती हैं।'' यह भी एक बड़ा कारण है बॉलीवुड में यौन शोषण का और उसके बाद पुरुष प्रधान समाज में महिला को ही अपराधी समझी जाने वाली पंरपरा इसको मज़ीद बढ़ावा देती है। महिलाएं अगर पुलिस शिकायत करने भी जाती हैं तो उनकी सुनवाई नहीं होती। थक हारकर आखिरकार अपना मुंह बंद करने में ही वह भलाई समझती हैं।

अपना मुंह बंद रखकर चुपचाप शोषण सहने का एक बड़ा कारण यह भी है कि आज इतनी तरक्की कर लेने के बावजूद जब किसी मिडिल क्लास सोसायटी में पलने वाली लड़की बॉलीवुड में जाकर अपना करियर बनाने का सपना देखती है तो उसके इस सपने के आड़े समाज आ जाता है। बड़ी मिन्नतों के बाद जब वह अपने परिवार से इजाज़त लेकर ख्वाबों के शहर मुंबई में अपना कदम रखती है तो वापस लौटने या मुश्किल परिस्थिति में परिवार का साथ मिलने का विकल्प उसके पास नहीं बचता। घर से सपोर्ट ना मिलने और मुंबई जैसे शहर में स्ट्रगल करने के लिए उसे मजबूरन इस शोषण को चुपचाप सहना ही होता है और इस मुद्दे पर समाज की संवेदनहीनता की तो बात ही करना बेकार है।

इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा गाइडलाइंस जारी की इसके तहत वर्क प्लेस यानी काम करने की जगह पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं की सुरक्षा के लिए नियम क़ायदे बनाए थे। 2013 में संसद ने विशाखा जजमेंट की बुनियाद पर दफ्तरों में महिलाओं के संरक्षण के लिए एक क़ानून पारित किया था। उस समय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने संसद में बताया था, ''2015 से वर्क प्लेस पर यौन उत्पीड़न के हर साल 500 से 600 केस दर्ज किए जाते हैं।''

कानून बनने के दो साल बाद अर्न्स्ट एंड यंग के एक सर्वे में ये बात सामने आई कि केवल 69 फीसदी कंपनियों ने आईसीसी का गठन किया। इतना ही नहीं, 60 फीसदी से ज्यादा कंपनियों ने उत्पीड़न की शिकायतों को संवेदनशीलता से सुनने और निपटाने के लिए अपने आईसीसी के सदस्यों की ट्रेनिंग की पहल तक नहीं की थी। एक-तिहाई महिला कर्मचारियों को इस तरह के किसी कानून की जानकारी भी नहीं थी। 

जब तक समाज इस मुद्दे पर संवेदनहीन रहेगा। यौन शोषण या रेप केस में पुरुषों के बजाए महिलाओं को दोषी समझा जाता रहेगा तब तक यौन शोषण की घटनाओं में कोई कमी नहीं आने वाली। रही बात बॉलीवुड की। तो ग्लैमर्स ज़िंदगी का सपना लेकर बॉलीवुड का रुख करने वाली अभिनेत्रियों को सबसे पहले खुद मे आत्मविश्वास लाना होगा। अपनी प्रतिभा की कदर करना दूसरों को सिखाना होगा। साथ ही बॉलीवुड की बड़ी अभिनेत्रियों को इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़नी होगी और इंडस्ट्री की पीड़ित महिलाओं के समर्थन में उतरना होगा। जिस प्रकार स्वयं को सश्क्त बनाने के लिए सामाजिक बेड़ियों की जंज़ीरे स्वयं महिलाओं ने ही तोड़ी उसी प्रकार यह लड़ाई भी खुद ही ल़ड़नी होगी। जैसे हॉलीवुड में काम करने वाली महिलाओं ने अपनी हिम्मत के दम पर मीटू कैंपेन की शुरुआत की उसी प्रकार बॉलीवुड को पहले महिलाओं को ही दोषी समझने वाले नज़रिए को तोड़ना होगा। 

कैसे हुई #MeeToo की शुरुआत?

करीब 12 साल पहले अमेरिका की सामाजिक कार्यकर्ता टेरेना बर्क ने खुद के साथ हुए यौन शोषण का जिक्र करते हुए सबसे पहले इन शब्दों का इस्तेमाल किया। बहरहाल, बर्क की पहल का असर 2017 में हुआ। हॉलीवुड प्रोड्यूसर हार्वे वाइंस्टीन पर 50 से ज्यादा महिलाओं ने 30 साल के दौरान यौन शोषण के आरोप लगाए। न्यूयॉर्क टाइम्स और न्यूयॉर्कर जैसे बड़े अखबारों ने इस पर रिपोर्ट प्रकाशित कीं। हॉलीवुड एक्ट्रेस एलिसा मिलानो ने भी आरोप लगाए। इसी दौरान सोशल मीडिया पर किसी ने उन्हें टैग करते हुए लिखा कि वो #MeToo के जरिए अपनी बात रखे। मिलानो ने ऐसा ही किया। 32 हजार से ज्यादा महिलाओं ने इस हैशटैग का उपयोग करते हुए अपनी आपबीती साझा की। जिसके बाद MeToo हैशटैग कम से कम 85 देशों में चला गया।  जिसमें भारत, पाकिस्तान और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं। संसद में और ब्रुसेल्स में यूरोपीय संघ के कार्यालयों में दुर्व्यवहार के आरोपों को जन्म देने के बाद, यूरोपीय संसद ने मुझे मी टू अभियान के जवाब में सीधे एक सत्र बुलाया। व्यापार के यूरोपीय आयुक्त सेसिलिया मालमस्ट्रॉम ने विशेष रूप से बैठक के कारण होने के कारण हैशटैग का हवाला दिया।