[अमितेश अग्निहोत्री ]
मोदी सरकार ने अपने 6 वर्षो के कार्यकाल में एक भी किसी भी तरह की कृषि ऋण माफी की घोषणा नही की है। यह बात खुद मोदी सरकार के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में कही है।
किसने पूछा था यह प्रश्न-
लोकसभा में सांसद एन रेडेप्पा ने सरकार से जानना चाहा था कि मोदी सरकार ने अभी तक कृषि ऋण माफी के संबंध में क्या किया है। कृषि मंत्री ने यह उत्तर लिखकर दिया है। रेडप्पा का प्रश्न था कि क्या मोदी सरकार के पास किसानों के कृषि संबंधी ऋण माफी का कोई रिकार्ड है।
लोकसभा के एक अन्य सदस्य ओमप्रकाश राजेनिम्बालकर ने सरकार से यह जानना चाहा कि साल 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार ने महाराष्ट्र के कितने किसानों का कर्ज माफ किया।
कृषि मंत्री ने क्या जवाब दिया-
ओमप्रकाश राजेनिम्बालकर के प्रश्न का भी वही जवाब दिया गया जो रेडप्पा को मिला। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लिखित में उत्तर देते हुए बताया कि मोदी सरकार ने साल 2014 से लेकर अभी तक महाराष्ट्र के किसी भी किसान का ऋण माफ नही किया है और न ही देश के किसी भी किसान का ऋण माफ किया गया है।
सरकार ने बताया कि किसानों की आय बढ़ रही है-
हालांकि सरकार ने लोकसभा में यह भी बताया कि मोदी सरकार के आने के बाद किसानों की आय बढ़ रही है। यह मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही पीएम किसान योजना, एमएसपी में वृद्धि जैसे तरीकों को अपनाने की वजह से बढ़ रही है।
कृषि मंत्री ने बताया कि राज्य स्वयं अपने संसाधनों के साथ अपने स्तर पर कृषि ऋण माफी योजनाओं की घोषणा करते हैं।
सरकार के पास कृषि ऋण माफी योजनाओं का कोई रिकार्ड नहीं-
कृषि मंत्री तोमर ने यह भी बताया कि भारत सरकार के पास राज्यों द्वारा की गई कृषि ऋण माफी की योजनाओं और घोषणाओं का कोई रिकार्ड नही है। उन्होने यह जवाब लोकसभा के सदस्य विजय कुमार के प्रश्न के जवाब में दिया। विजय कुमार ने उन राज्यों की लिस्ट मांगी थी जिन्होने किसानों के कृषि से संबंधित कर्ज माफ किए हैं या इस बाबत घोषणाएं की हैं।
लेकिन कारपोरेट के लाखों करोड़ के कर्ज माफ कर चुकी है यह सरकार-
देश के किसानों को खेती किसानी में लिया गया कर्ज माफ न करने वाली मोदी सरकार कारपोरेट पर जबर्दस्त तरीके से मेहरबान रही है। आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि देश का किसान मरता रहा जबकि सरकार बड़े-बड़े पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों का लाखों करोड़ रूपया कर्ज माफ करती गई।
मोदी सरकार के शुरूआती चार सालों (2014 से 2018) में 21 सरकारी बैंको ने 3 लाख 16 हज़ार करोड़ के लोन माफ़ किए। यह रकम भारत के स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा के कुल बजट का दोगुना बैठती है। न खाउंगा और न खाने दूंगा का नारा देकर सत्ता में आए मोदी के कार्यकाल में कारपोरेट के कर्जां की सख्ती के साथ वसूली होनी चाहिए थी मगर हुआ उल्टा। एक तरफ एनपीए बढ़ता गया और दूसरी तरफ लोन वसूली घटती गई।
मोदी सरकार ने साल 2018 में राज्यसभा को बताया था कि सरकारी बैंकों ने अप्रैल 2014 और सितंबर 2017 के बीच 2.41 लाख करोड़ रुपये के नॉन परफार्मिंग एसेट को खाते से बाहर किया था। यह राशि 2018 के अंत तक 3.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गई।
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सवालों के घेरे में हैं सरकार के दावे-
कृषि मंत्री ने कहा है कि किसानों की उपज को खरीदने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि का फैसला कर सरकार ने किसानों की आय को बढ़ाने वाला काम किया है। हालांकि पिछले महीनों से कृषि विधेयकों का विरोध कर रहे हरियाणा और पंजाब सहित देश भर के किसानों को देखें तो कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के इन दावों पर संदेह होता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि संबंधित नए कानूनों में कही भी यह प्रावधान नही है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्यों की व्यवस्था बनाए रखेगी। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उनकी सरकार किसानों की उपज की खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्यों की घोषणा करती रहेगी लेकिन सवाल यह है कि सरकार अगर इतनी ही ईमानदार है अपने बनाये गये कृषि कानूनों में इस बात का उल्लेख क्यों नही किया।
इन कानूनों के खिलाफ किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) सरकार द्वारा 5 जून को लाए गये खेती के तीन अध्यादेशों और इन पर आधारित नए कानूनों, के खिलाफ 25 सितम्बर को अखिल भारतीय बंद व किसानों की प्रतिरोध सभाओं का आयोजन करने जा रही है।