मोदी ने 55 महीनों में 58 विदेश यात्राएं की, कुल खर्चा हुआ- 517.82 करोड़

[अमितेश अग्निहोत्री] 
 
 
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राएं हमेशा चर्चा का विषय बनी रहती है। साल 2014 में सत्ता संभालने के बाद से ही प्रधानमंत्री ने ताबड़तोड़ विदेश यात्राएं की जिनपर अरबों रूपये खर्च हो गए। 
 
अब सरकार ने जानकारी दी है कि मार्च 2015 से नवंबर 2019 यानि 55 महीनों में कुल 58 विदेश यात्राएं की जिनमें 517.82 करोड़ रूपयों का खर्चा बैठा। इस साल यानि 2020 में प्रधानमंत्री कोरोना महामारी के चलते विदेश यात्राएं नही कर पाए हैं। 

राज्यसभा में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सांसद फौजिया खान ने सरकार से सवाल पूछा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 से अब तक कितनी विदेश यात्राएं की हैं और उनकी इन यात्राओं पर कितना खर्च हुआ। इस पर लिखित में जवाब देते हुए विदेश विदेश राज्यमंत्री वी मुरलीधरन ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2015 से नवंबर 2109 के बीच कुल 58 देशों की यात्रा की और इन यात्राओं पर कुल 517.82 करोड़ रुपये खर्च हुए। 
 
विदेश राज्यमंत्री ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री की इन विदेश यात्रओं से विश्व के तमाम देशों के साथ व्यापार और निवेश, प्रौद्योगिकी, सामुद्रिक सहयोग, अंतरिक्ष, रक्षा सहयोग और लोगों के बीच परस्पर संपर्कों सहित अनेक क्षेत्रों में संबंध मजबूत हुए हैं।

ये है प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं का लेखा-जोखा-
 
साल 2015 के मार्च महीने से मोदी ने अपनी विदेश यात्राओं का सिलसिला शुरू किया। इस महीने वह सबसे पहले सेशेल्स, मारीशस और श्रीलंका गए। मार्च के महीने में ही मोदी ने सिंगापुर की यात्रा की। उसके तुरंत बाद अगले महीने यानि अप्रैल में उन्होने फ्रांस, जर्मनी और कनाडा की यात्रा की। 
मोदी नवंबर 2019 में ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए ब्राजील गए। उसके बाद से उन्होने कोई विदेश यात्रा नही की है।
 
साल 2019 के सितंबर महीने में ही मोदी हयूस्टन गए जहां उनके सम्मान में हाउडी मोदी का कार्यक्रम हुआ। इस कार्यक्रम में हयूस्टन के एक स्टेडियम में उन्होने 50,000 भारतीय-अमेरिकी नागरिकों को संबोधित किया। 
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में अपने कार्यकाल की शुरूआत की। इसके तुरंत बाद ही बतौर प्रधानमंत्री उनका पहला विदेश दौरा भूटान का हुआ। इसी साल उन्होनें ब्राजील, नेपाल, जापान, अमेरिका, म्यांमार, फिजी और ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया। 

क्या मोदी की विदेश यात्राओं से भारत को क्या हासिल हुआ-
 
विदेश राज्यमंत्री ने राज्यसभा में दावा किया है कि प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं से विश्व के प्रमुख देशों और हमारे पड़ोसियों से संबंधों में सुधार आया। संबंधों में आई इस मजबूती ने हमारे आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और हमारे नागरिकों की भलाई के लिए भारत के राष्ट्रीय विकास एजेंडे में योगदान दिया है। इसके अलावा विदेश राज्यमंत्री वी मुरलीधरन यह भी बताते हैं कि भारत अब जलवायु परिवर्तन, अंतरराष्ट्रीय अपराध और आतंकवाद, साइबर सुरक्षा और परमाणु अप्रसार सहित बहुपक्षीय स्तर पर वैश्विक एजेंडे को मूर्तरूप देने के लिए बढ़-चढ़कर योगदान दे रहा है और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसे वैश्विक मुद्दों के लिए दुनिया को अपनी अनूठी पहलों की पेशकश कर रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर बयान करती है। 
 
पिछले दिनों भारत के विदेश सचिव बांग्लादेश गए तो प्रधानमंत्री शेख हसीना ने उन्हें 4 घंटे इंतजार करवाया। इससे पहले बंग्लादेश में भारतीय राजदूत लगातार मुलाकात का वक्त मांगते रहे लेकिन हसीना उनसे नही मिलीं। नेपाल के साथ ऐतिहासिक सम्बन्धो का सत्यानाश भी ऐतिहासिक है। नेपाल पूरी तरह से चीन के पाले में चला गया है। चीन ने नेपाल में डेढ़ अरब डॉलर का निवेश कर दिया है। इतिहास में पहली बार भारत और नेपाल के बीच सीमा पर झड़प हुई। चीन से ताजा विवाद के बाद भारतीय सेना की एक टुकड़ी नेपाल बॉर्डर पर भी नजर रख रही है। सीएए-एनआरसी लागू करते समय भाजपाई नेताओ ने बांग्लादेशियों को जम कर गालियां दी। इसने हमेशा से भारत समर्थक रही शेख हसीना के लिए दिक्कत बढ़ाने का काम किया। नतीजा यह हुआ कि बंग्लादेश के विदेशमंत्री ने अपना भारत दौरा रद्द कर दिया। शेख हसीना के पिता बांग्लादेश के राष्ट्रपति मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी गई थी तब हसीना को भारत मे शरण देने वाली इंदिरा गांधी थीं। शेख हसीना यह एहसान कभी नही भूलीं। लेकिन सीएए-एनआरसी लागू करने के जोश में मंत्रियों की बंग्लादेशियों के खिलाफ बेलगाम बयानबाजी ने हसीना को भारत के साथ संबंधों पर विचार करने के लिए मजबूर कर दिया। फिलहाल खबर यह है कि बंग्लादेश में  चीन बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है और साथ ही बंग्लादेश की नौसेना को मजबूत बना रहा है। 
 
श्रीलंका की भी यही कहानी है। वहाँ के राष्ट्रपति ने भारत से अनुरोध किया कि उसे 96 करोड़ डॉलर के कर्ज का भुगतान करने के लिए अतिरिक्त समय दिया जाए। मोदी सरकार ने आज तक इस गुहार का उत्तर नही दिया। मौका देख कर चीन ने श्रीलंका को अच्छा-खासा कर्ज दे दिया। 
 
मोदी सरकार बड़े गर्व से बताती थी कि देश ईरान के चाबहार में बंदरगाह का निर्माण कर रहा है। इसके पूरा होने के बाद चीन और पाकिस्तान की मध्य एशिया में घुसने की कोशिशें नाकाम हो जाएंगी। लेकिन मोदी सरकार ने अमेरिकी दबाव के आगे झुकते हुए निर्माण कार्यो की गति को बेहद धीमा कर दिया। नतीजा यह हुआ कि थक-हार कर ईरान ने चारबहार बंदरगाह को विकसित करने का काम भारत से छीन कर चीन को दे दिया।  
 
कहने की जरूरत नही कि पिछले 6 सालों में अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध और सामरिक संतुलन को बर्बाद बुरी तरह बर्बाद हुए हैं। चीन ने इन मौकों का फायदा उठाने में देरी नही की और भारत को घेरने की नीति पर काम करते हुए श्रीलंका, बंग्लादेश और नेपाल को अपने पाले में बड़ी चतुराई के साथ खींच लिया। सवाल यह है कि प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं से हासिल क्या हुआ। जबकि इन पर अरबों रूपयों का खर्च बैठ चुका है।